गोपेश्वर (चमोली)। अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछडी जाति वैचारिक महासभा ने शुक्रवार को जिलाधिकारी के माध्यम से राज्यपाल को भेजे गए ज्ञापन में स्कूलों की प्रार्थना सभा के दौरान गीता श्लोक के वाचन का विरोध करते हुए इस आदेश को वापस लेने की मांग की है।
जिलाधिकारी के माध्यम से राज्यपाल को भेजे गए ज्ञापन में महासभा के अध्यक्ष डा. पुष्कर बैछवाल, महामंत्री राकेश कुमार, मनीष कपरवाल, रिजवान कौसर मोहम्मद शमीम, हीरा राधियाल, मातवर कंसवाल ने कहा कि जानकारी मिली है कि माध्यमिक शिक्षा निदेशक की ओर से आदेश जारी किया है जिसमें सभी सरकारी स्कूलों में प्रार्थना सभा में प्रतिदिन भगवत गीता के श्लोक सुनाए जाने और उसकी व्याख्या किये जाने को कहा गया है। उन्होंने कहा कि भगवत गीता एक धार्मिक ग्रंथ है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद-28 (1) में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से सरकारी निधि से संचालित शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जा सकती। यह प्रावधान देश की धर्मनिर्पेक्षता और सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान की भावना को बनाये रखने के लिए बनाया गया है। उनका कहना है कि यह आदेश संविधान के इस प्रावधान का उलंघन करता है और सरकारी स्कूलों में धर्मनिर्पेक्ष शिक्षा के सिद्धांत को कमजोर करता है।
उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों में सभी धर्मो, जातियों और समुदायों के छात्र अध्ययन करते है। ऐसे में किसी एक धार्मिक ग्रंथ के श्लोकों को अनिवार्य रूप से लागू करना अन्य धर्मावलंबियों, मतालंबियों और समुदायों के बीच असहजता और भेदभाव की भावना को जन्म दे सकता है, जो सामाजिक समरसता और समावेशी शिक्षा के उद्देश्यों के विपरीत है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तार्कितता और समावेशी मूल्यों को बढावा देना है न कि किसी विशेष धार्मिक ग्रंथ को प्रोत्साहित करना। उन्होंने कहा कि उनका संगठन इसका विरोध करती है और राज्यपाल से मांग करता है कि इस आदेश को निरस्त किया जाए ताकि समाज में समरसता बनी रहे।
