श्रीनगर गढ़वाल। हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर के राजनीति विज्ञान विभाग के तत्वावधान में वेबीनार आयोजित कर उत्तराखं डमें प्राकृतिक आपदाओं के वैज्ञानिक और नीतिगत पहलुओं पर परिचर्चा की गई।

परिचर्चा में बोलते हुए राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एमएम सेमवाल ने कहा की उत्तराखंड में हो रही आपदाएं न केवल प्राकृतिक बल्कि मानव जनित भी हैं। इन आपदाओं से सीख ले कर हमें भविष्य की योजनाएं बनानी चाहिए। उत्तराखंड के विकास के लिए आवश्यक है कि विकास कार्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ किए जाएं, तभी हम पर्यावरण और विकास दोनों को अधिक दिनों तक सुरक्षित और संरक्षित रख सकते हैं।

औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, भरसार के भूवैज्ञानिक डॉ. एसपी सती ने कहा कि हिमालय विश्व की जितनी प्राचीन और संवेदनशील पर्वत शृंखला है इसके विषय में उतनी ही कम जानकारी तथा प्राथमिक आंकड़े उपलब्ध हैं। यही कारण है कि हिमालय को लेकर उस तरह की व्यवस्थाओं का समायोजन नहीं हो पाया है । वर्ष 2017 में यूएनओ की संस्था आइपीसीसी की रिपोर्ट में भी यह बात स्पष्ट रूप से वर्णित है प्रति दशक जिस तरह से 0.5 डिग्री सेल्सियस वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है। उससे सबसे अधिक उच्च हिमालयी क्षेत्रों में नुकसान हो रहा है इससे अनियंत्रित मौसमी बदलाव जैसे बेमौसमी बारिश, ग्लेशियरों के पिघलने से अनेक संकट उत्पन्न हो रहे हैं । उत्तराखंड के संदर्भ में 2013 कई आपदा या फिर इसी वर्ष रेणी जोशीमठ में आई आपदा तथा उससे उपजे हालातों से समझ सकते हैं । इन मौसमी बदलाओं के साथ जिस तरह से अनियंत्रित और अनियोजित विकास इस क्षेत्र में हो रहा है उससे इन प्राकृतिक बदलाओं से बड़ी आपदाओं का निर्माण हो रहा है । लगातार सड़कों के निर्माण से लगभग 3 करोड़ घन मीटर से ज्यादा मलबा नदियों के किनारे जमा किया है जो किसी भी वक्त नदियों के साथ बहकर आने के लिए तैयार है, और एक बड़ी आपदा का कारण बनेगा। इसमें नीतिगत तथा व्यवस्थापन सम्बन्धी गम्भीर खामियां मौजूद हैं जिससे आपदाएं बड़े स्तर पर कहर बरपा रही हैं ।

रामनाथ गोयंका अवार्ड से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार सुशील बहुगुणा ने अपने अनुभवों के आधार पर कहा कि वर्तमान समय मे विकास को लेकर हमारी धारणा बेहद सतही तथा खोखली है जिससे सिर्फ चंद लोगों का ही तत्कालीन रूप से फायदा हो रहा है। विकास की इस बाजारवादी धारणा से निश्चित रूप से प्राकृतिक संसाधनों के समक्ष संकट उत्पन्न पैदा हो गया है क्योंकि ये संसाधन हमारे पास सीमित मात्रा में ही उपलब्ध हैं । विकास की इस अंधी दौड़ में ऊर्जा की लगातार बढ़ती मांग के कारण न सिर्फ हमें नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों की तरफ बढ़ना चाहिए बल्कि हिमालय जैसे संवेदनशील क्षेत्र में बड़े निर्माण कार्यों तथा परियोजनाओं पर भी तत्काल विराम लगाना चाहिए । इसमें पत्रकारिता जगत से जुड़े लोगों का विशेष महत्व है उन्हें तथ्यों तथा आंकड़ो के आधार पर इससे जुड़ी चिन्ताओं तथा सभी पहलुओं को जनसामान्य के समक्ष रखना चाहिए। साथ ही सामाजिक स्तर पर भी सामुहिक सहभागिता में वृद्धि किये जाने की आवश्यकता है। इस कार्यक्रम में डीन प्रो. आरएन गैरोला, प्रो. हिमांशु बोड़ाई, प्रो. महावीर नेगी, डॉ.मनोज कुमार, डॉ. राजेश पालीवाल, डा. नरेश कुमार आदि ने प्रतिभाग किया। जबकि संचालन शोध छात्रा शिवानी पांडे ने किया।

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