श्रीनगर गढ़वाल। संविधान दिवस के अवसर पर हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग की ओर से एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया। भारत के संविधान के सिद्धान्तों और मूल्यों को समझने के लिए 2015 से सरकार की ओर से इस दिन को मनाने का निर्णय लिया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के विधि विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. सुभाष चन्द्र गुप्ता, अतिथि वक्ता जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के डॉ. नावेद जमाल ने वक्तव्य दिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता मानविकी एवं समाज विज्ञान संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो. सीएस सूद ने की।

वेब सेमिनार की शुरूआत कार्यक्रम के समन्वय प्रो. एमएम सेमवाल ने संविधान की प्रस्तावना का पाठ कर के किया। उन्होंने कहा कि हमारा संविधान बनाने वाली सभा वास्तव में भारत की प्रतिनिधि थी जिसमें सभी वर्गों और क्षेत्रों से लोग थे। हमारा संविधान बेमिशाल है जो कि सभी की स्वतंत्रता और समानता को सुनिश्चित करता है और समय के अनुकूल अपने मे बदलाव लाने के नियम भी खुद में समाहित करता है जो कि समयानुसार परिवर्तन को स्वीकार करने का द्योतक है। इन्हीं बदलावों की गुंजाइश ने हमारे संविधान को आज भी जीवंत और स्वीकार्य बनाये रखा है। यह पिछले 70 सालों से जीवंत, सतत और गतिशील है जो कि हमें सभी क्षेत्रों में मागदर्शन देता है। यह भारत की विविधता में एकता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम पूरे देश में आयोजित किये जा रहे है। ताकि युवा पीढ़ी को संविधान और अपनी जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक किया जा सके।

मुख्य वक्ता हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के विधि विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. सुभाष चन्द्र गुप्ता ने कहा कि संविधान दिवस मनाने की शुरुआत वर्ष 1979 में तब हुई जब एल एम सिंधवी ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन को यह दिवस मनाने का प्रस्ताव दिया तब से लेकर वर्ष 2015 तक इस दिवस को कानून दिवस के रुप में मनाया जाता रहा था तथा उसके बाद इसे संविधान दिवस के रूप में मनाने की शुरुवात हुई। उन्होंने कहा कि संविधान राष्ट्रवाद, राष्ट्रभक्ति की भावना का पवित्र ग्रंथ है जिसे सभी नागरिकों को समझना चाहिए। उन्होंने भारतीय संविधान को भारतीय संस्कृति एवं जनता की आकांक्षाओं का दर्पण कहकर संबोधित किया जिसमें जनता सर्वाेच्च है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संविधान, साधारण विधि से भिन्न तथा सर्वाेच्च है। इस प्रकार भारतीय संविधान ब्रिटिश संसदीय व्यवस्था से अलग संवैधानिक सर्वाेच्चता का प्रतीक है जिसमें न्यायिक पुनरावलोकन जैसे गुण विद्यमान हैं। उन्होंने संविधान निर्माण के संदर्भ में पंडित नेहरु तथा डॉ. अंबेडकर द्वारा संविधान सभा में दिए गए भाषणों का भी विशेष रुप से उल्लेख किया। उन्होंने कहा की भारतीय संविधान के विशेष गुण संप्रभुता, लोकतंत्र, गणराज्य, समाजवाद तथा धर्मनिरपेक्षत है जो इसे दुनिया भर के संविधानों से अलग खड़ा करता है। संविधान जनता की संपत्ति है एवं वही इसका संरक्षण करती है। अतः आवश्यक है कि जनता जागरुक रहकर इसकी कार्यप्रणाली को समझे।

अतिथि वक्ता जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के डॉ. नावेद जमाल ने कहा कि संविधान की आत्मा में लोकतंत्र बसता है। इसी आत्मशक्ति से संविधान लोकतंत्र को अराजकता और निरंकुशता से बचाता है। राज्य और सरकार को चलाने में संविधान की भूमिका है वही जनता के पक्ष में खड़ा होता है और सरकार को निरंकुश होने से भी बचाता है। बाबा साहेब अंबेडकर ने संविधान को लागू करने की इस तिथि को कहा था कि हमारा संविधान तब तक बहुत अच्छा है जब तक लोग अच्छे है। इस लिए हमारी जिम्मेदारी है कि हम सविधान के मूल्यों को अपने अंदर लाने का प्रयत्न करना है। संविधान की प्रस्तावना में संविधान की प्रकृति और लक्ष्यों को समाहित किया गया है जो कि संविधान के अंदर लिखे सिद्धांतों का प्रतिबिंब है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता मानविकी एवं समाज विज्ञान संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो. सीएस सूद ने कहा कि संविधान हमारे आचरण का निर्माण करता है। आज का दिन महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि इसी दिन हमें अपनी शासन व्यवस्था के संचालन तथा जीवन को सरल बनाने के लिए साधन के रुप में संविधान की प्राप्ति हुई। उन्होंने भी इसे संस्कृति सभ्यता का दर्पण तथा सार बताते हुए इसके पांच तत्वों स्वतंत्रता, समानता, न्याय तथा बन्धुता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि हमें संविधान के शब्दों से आगे बढ़कर इसके पीछे की भावना को समझना चाहिए। हमें कानून के प्रति निष्ठावान रहकर स्वतंत्रता, स्वच्छंदता एवं स्वेच्छाचारिता में अंतर करने की आवश्यकता है तथा संविधान के मूल्यों को समाज में उतारने की जरुरत है। इसी मूल भावना को मूर्त रूप देकर ही राष्ट्र निर्माण ,चरित्र निर्माण एवं व्यक्ति निर्माण संभव है। राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. राकेश काला ने सभी का धन्यवाद दिया। और कहा कि इस कार्यक्रम में देश के लगभग सभी हिस्सों से लोगों ने प्रतिभाग किया। दिल्ली विश्वविद्यालय, लखनऊ विश्वविद्यालय, तमिलनाडु, उड़ीसा, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार आदि राज्यों से छात्रों, शिक्षकों ने प्रतिभाग किया और इस कार्यक्रम को सफल बनाया। इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. नरेश कुमार ने किया। कार्यक्रम के लिए देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के 234 छात्रों, शोधार्थियों ने पंजीकरण किया। इस कार्यक्रम में प्रो. आरएन गैरोला, प्रो. पीएस राणा, प्रो. हिमांशु बौड़ाई, प्रो. विनीत घिल्डियाल, डॉ. सुनील खोसला, डॉ. राकेश नेगी, डॉ.राखी पंचोला आदि मौजूद रहे।

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