गोपेश्वर (चमोली)। चमोली के उच्च हिमलयी क्षेत्रों के साथ ही अब जिले में 11 से 12  सौ  मीटर की ऊंचाई के गांवों में भी काश्तकार सेब की खेती कर सकेंगे। यहां उद्यान विभाग ने जिले में क्लोनल रुट स्टॉक पद्धति से तैयार सेब के पौधों की बागवानी की योजना को मूर्त रुप देने का कार्य शुरु कर दिया है। विभाग ने जिले में स्पर वैराइटी के सेब के उत्पादन के लिये पहले चरण में 31 काश्तकारों के लिये करीब 7130 पौधों के रोपण की योजना पर कार्य शुरु कर दिया है।

चमोली जिले में 15 सौ मीटर से अधिक ऊचांई वाले क्षेत्रों में काश्तकारों की ओर से सामान्य रुप से सेब की पैदावार उगाई जाती है। लेकिन अब उद्यान विभाग की ओर से जिले में 11 से 12 सौ मीटर के मध्य निवास करने वाले काश्तकारों को सेब उत्पादन से जोड़ने की योजना पर कार्य शुरु कर दिया है। विभाग ने क्लोनल रुट पद्धति से तैयार सेब के रेड बलॉक्स, जेरोमाइन, रेडगाला, मिंगराटा और ग्रेनीस्मीथ प्रजाति के पौधों का रोपण शुरु कर दिया है। जिससे अब चमोली के निचले इलाकों में भी काश्तकार सेब का उत्पादन कर अपनी आर्थिकी में वृद्धि कर सकेंगे। सहायक विकास अधिकारी (उद्यान) रघुवीर सिंह राणा ने बताया कि जिले में सेब के उत्पादन के लिये जलवायु मुफीद है। ऐसे में सेब के उत्पादन में वृद्धि के लिये क्लोनल रुट स्टॉक पद्धति के पौधों का रोपण काश्तकारों के लिये लाभप्रद साबित होगा।

 

क्लोनल रुट स्टॉक के पौधों से ये हैं लाभ

सामान्य रुप से जहां सेब की पैदावार 15 से 25 सौ मीटर की ऊचांई वाले इलाकों में होती है। वहीं सामान्य पौधों में फल का उत्पान पांच से छह वर्ष में शुरु होता है। जबकि क्लोनल रुट स्टॉक पद्धति से तैयार पौधे 11 से 12 सौ मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में पैदावार देते हैं तथा इन पौधों से काश्तकार ढाई से तीन वर्ष में उत्पादन शुरु हो जाता है। साथ ही पौधे की ऊचांई कम होने से पौधों के रख-रखाव में काश्तकारों को अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ती है।

 

जिला योजना के माध्यम से जिले में क्लोनल रुट स्टॉक पद्धति के सेब के पौधों के रोपण का कार्य किया जा रहा है। जिले में वर्तमान तक 31 काश्तकारों की ओर से 7130 पौधों की मांग की गई है। जिसके लेकर जिले के विभिन्न गांवों में रोपण कार्य शुरु कर दिया गया है। 

तेजपाल सिंह, जिला उद्यान अधिकारी, चमोली।

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