श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल)। हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के राजनीति विज्ञान विभाग  में ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति और अवसर  विषय पर एक दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया।

मुख्य वक्ता महिला अध्ययन केंद्र की अध्यक्षा तथा राजनीति विज्ञान विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो. हिमांशु बौड़ाई ने विषय पर अपनी बात शुरू करते हुए कहा कि हमें ग्रामीण क्षेत्र की परिभाषा को जानना पड़ेगा और यह भी देखना पड़ेगा कि ग्रामीण क्षेत्र किस प्रकार शहरी क्षेत्रों से अलग है ग्रामीण क्षेत्र और शहरी क्षेत्रों में मुख्य अंतर कार्य के आधार पर है। ग्रामीण क्षेत्र में आबादी कृषि क्षेत्र से संबंधित कार्य करती है और भारत में 48 फीसदी महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है जिसमें से ज्यादातर महिलाएं कृषि क्षेत्र में मजदूरों की तरह काम करती हैं जबकि उनके पास जमीन का मालिकाना हक नहीं है जो कि एक बड़ी चुनौती है।

राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एमएम सेमवाल ने कहा कि ग्रामीण भारत की महिलाएं अपने घर के कामकाज में इतना व्यस्त रहती हैं कि उनको अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखने का समय ही नहीं मिलता, जो कि एक चिंताजनक विषय है। ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी होना होगा जिसमें सरकार और नागरिक समाज को अहम भूमिका निभानी होगी। महिलाओं को पहाड़ में जैविक खेती, फूलों की खेती, औषधीय पौधों की खेती एवं मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण देकर उनको आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में मानव तस्करी के मामले बढ़ते जा रहे हैं और हिमालय राज्यों में उत्तराखंड मानव तस्करी मैं दूसरे नंबर पर है।  मानव तस्करी में महिलाओं की तस्करी अधिक होती है। जिसके लिए सरकार को भी आगे आने की आवश्यकता है।

डॉ. मनोज कुमार ने कहा कि भारतीय महिलाओं ने कई क्षेत्र में प्रगति की है किंतु यह केवल एक शुरुआत है। जरूरत इस बात की है कि महिलाओं पर लगाए गए अनावश्यक प्रतिबंधों को हटाया जाए क्योंकि इन अनावश्यक प्रतिबंधों से महिलाओं की भागीदारी कम हो रही है।  ग्रामीण भारत में महिलाएं अवैतनिक कार्य करती हैं। आवश्यकता यह है कि महिलाओं के गृह कार्य को भी वेतन कार्य की श्रेणी में रखा जाए। शोध छात्रा ने शिवानी पांडे ने कहा कि ग्रामीण भारत की महिलाओं की सस्याओं की मुख्य वजह पितृसत्तात्मक व्यवस्था है, जो महिलाओं के कंधे पर बोझ की तरह है। महिलाओं को रोजगार और स्वावलंबन में अधिक अवसर देने की आवश्यकता है, ताकि वो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनें। स्नातकोत्तर के छात्र अभय प्रताप ने महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा को रेखांकित करते हुए कहा कि इस ने महिलाओं के विकास में सबसे बड़ी रुकावट का काम किया है। कार्यक्रम में डॉक्टर अनिल दत्ता ने भी अपने विचार व्यक्त किए। परिचर्चा का संचालन एमए. छात्र पुष्कर झा और वीरेंद्र सिंह ने किया।

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