गोपेश्वर (चमोली)। चमोली जिले के सीमावर्ती गांव नीती माणा घाटियों के जनजातियों ने शीतकालीन प्रवासों के उजडऩे की आशंका जताते हुए भूमिधरी का दर्जा देने पर जोर दिया है।

नीती-माणा घाटी सांस्कृतिक एवं खेल विकास समिति की माणा के प्रधान पीतांबर मोल्फा तथा गढ़वाल विवि छात्र महासंघ के पूर्व अध्यक्ष मनोज रावत की अध्यक्षता में हुई बैठक में जनजाति परिवारों के शीतकालीन पडावों के उजडऩे की आशंका जताई गई है। उन्होंने कहा कि अब जनजाति परिवारों के शीतकालीन प्रवास स्थलों पर खतरा मंडराने लगा है। उनका कहना था कि मौजूदा दौर में जनजाति परिवार विभिन्न स्थानों पर रहते हैं। पुश्तैनी पडाव अथवा प्रवास स्थलों पर काबिज जनजातियों को भूमिधरी का अधिकार नहीं मिला। इसके चलते जनजातियों के प्रवास स्थल अथवा भूमि राजस्व रिकार्ड में दर्ज नहीं हो पाई। उनका कहना था कि मौजूदा दौर में कर्णप्रयाग रेललाइन का अंतिम स्टेशन सिवाई में बनाया जा रहा है। सिवाई रेल स्टेशन से कालेश्वर को सडक़ मार्ग से जोडऩे की कवायद चल रही है। भविष्य में कालेश्वर ही समूची गतिविधियों का केंद्र बनेगा। व्यापारिक गतिविधियां भी कालेश्वर से ही संचालित होंगी। यही नहीं ट्रासपोर्ट का सारा जंक्शन कालेश्वर ही बनेगा। रेल स्टेशन के चलते चारधाम यात्रा की समूची गतिविधियां ऋषिकेश की तर्ज पर कर्णप्रयाग से ही संचालित होंगी।

उन्होने कहा कि कालेश्वर पौराणिक काल से जनजातियों का शीतकालीन पडाव रहा है। इसके बावजूद अब तक काश्तकारी समेत मकानों की भूमि भी जनजाति परिवारों के नाम दर्ज नहीं है। हालांकि पडाव की व्यवस्था पौराणिक काल से ही सरकार की ओर से की गई थी। कालेश्वर में हालांकि ट्रांसपोर्ट नगर भी स्थापित है। इसके चलते ट्रांसपोर्ट नगर के आसकृपास रह रहे जनजाति के परिवारों पर मकान बनाने का खतरा भी पैदा हो गया है। भूमिधरी न होने के चलते मकानों के उजडऩे की आशंका भी बलवती होती जा रही है। उनका कहना था कि अलकनंदा तट के इर्द-गिर्द की भूमि पर भी जनजातियों को विस्तार पर भी पाबंदी लगाई जा रही है। इसके चलते अब जनजाति परिवारों भूमिधरी का दर्जा पाने की जद्दोजहद करनी होगी। भूमिधरी का अधिकार प्राप्त करने के लिए विनियमितीकरण की प्रक्रिया से भी गुजरना होगा। कहा गया है कि भविष्य में रिबर साइड होने के चलते जनजातियों के प्रवास स्थल देवलीबगड़ का विकास संभव है। ऐसे में देवलीबगड़ के जनजाति परिवारों पर भी गाज गिर सकती है। कमोवेश सभी शीतकालीन पड़ाव अथवा प्रवास स्थलों पर इसी तरह का खतरा मंडरा सकता है। उन्होने सरकार से जनजातियों को अब तक के कब्जों के आधार पर भूमिधरी का अधिकार प्रदान करते हुए विनियमितीकरण की प्रक्रिया को अमल में लाए जाने की गुहार लगाई है।

बैठक में समिति के सचिव धीरेंद्र सिंह गरोडिया, पूर्व प्रधान हरेंद्र सिंह राणा, पुष्कर सिंह राणा, बलबीर सिंह रावत, अनूप रावत, बलबीर सिंह राणा, सुपिया सिंह राणा, रणजीत सिंह टोलिया, संग्राम सिंह राणा आदि ने विचार व्यक्त किए।  उन्होंने कहा कि यदि सरकार ने इस मसले पर तत्काल कार्रवाई नहीं की तो जनजाति परिवार आंदोलन को विवश होंगे।

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