गोपेश्वर (चमोली)। भाकपा माले के प्रदेश सचिव इंद्रेश मैखुरी ने गुरूवार को एक बयान जारी करते हुए कहा कि उत्तरकाशी-ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राजमार्ग पर सिल्क्यारा सुरंग में फंसे 40 मजदूरों के रेसक्यू में हो रही देरी चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया यह चार धाम सड़क परियोजना निर्माता कंपनी एनएचआईडीसीएल की ओर से पहाड़ और मजदूरों की सुरक्षा से खिलवाड़ का मामला प्रतीत होता है। इस कंपनी के विरुद्ध मजदूरों का जीवन खतरे में डालने का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि 2021 में उच्चतम न्यायालय ने इस परियोजना को पर्यावरणीय खतरों को भांपने के बावजूद अनुमति देते हुए कहा था कि इस के निर्माण में सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध तौर-तरीके अपनाए जाए, पर उत्तरकाशी की घटना बता रही है कि ऐसा नहीं किया गया।

भाकपा माले के प्रदेश सचिव ने आरोप लगाते हुए कहा कि पूरे चार धाम परियोजना सड़क मार्ग को देख लें तो यह साफ दिखाई देता है कि परियोजना निर्माता कंपनी ने किस कदर लापरवाही के साथ काम करते हुए पहाड़ों को तहस-नहस कर डाला है। उन्होंने कहा कि यह पहला मौका नहीं है जबकि इस परियोजना निर्माता कंपनी की लापरवाही से लोगों का जीवन खतरे में पड़ा है। जुलाई 2020 में नरेंद्रनगर के खेड़ा गांव में इस परियोजना निर्माण करने वाली कंपनी की ओर से महीने भर पहले बनाए गए पुश्ते के ढहने से एक घर दब गया और तीन बच्चों की मृत्यु हो गयी। 21 दिसम्बर 2018 को रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राजमार्ग पर सड़क निर्माण के मलबे में दब कर सात मजदूरों की मौत हो गयी। उस समय भी परियोजना निर्माता कंपनी की लापरवाही सामने आई थी। 24 जुलाई 2021 को असिस्टेंट प्रोफेसर मनोज सुंदरियाल की कार पर, इस परियोजना के दौरान खोदी गयी एक चट्टान के गिरने के चलते साकणीधार के पास उनकी मृत्यु हो गयी। कितने वाहनों पर लापरवाही से खोदे गए पहाड़ों से चट्टानें गिरी और वे क्षतिग्रस्त हुए, इसका कोई हिसाब ही नहीं है।   इसलिए इस पूरी तबाही की जिम्मेदारी एनएचआईडीसीएल पर आयद की जानी चाहिए।

उनका यह भी कहना है कि भारत सरकार का सड़क एवं राजमार्ग मंत्रालय भी इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार है क्यूंकि इस मंत्रालय ने बिना पर्यावरणीय प्रभाव आकलन करवाए ही इस परियोजना को बनाने का काम शुरू कर दिया। इसके लिए 889 किलोमीटर की परियोजना को सौ किलोमीटर से कम के 53 पैकेजों में बांट दिया गया।  भारत सरकार के सड़क और राजमार्ग मंत्रालय को बताना चाहिए कि आखिर किसके लाभ के लिए इस परियोजना को पर्यावरणीय प्रभाव आकलन करवाए बिना बनने की अनुमति दी गयी।

उन्होंने कहा कि इस पूरे प्रकरण में आपदा प्रबंधन तंत्र की कमजोरी भी एक बार फिर प्रदर्शित हुई है। आपदा आने से पहले आपदा प्रबंधन तंत्र कागजों पर बहुत मजबूत नजर आता है, लेकिन जैसे ही आपदा के हालात पैदा होते हैं, वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो कर केवल धूल में लट्ठ चलता नजर आता है। वास्तविक आपदा की स्थितियों में आपदा प्रबंधन तंत्र केवल हैडलाइन का प्रबंधन करने के ही काम आता है। उन्होंने कहा कि अपने मजदूर साथियों के चौथे दिन भी रेसक्यू न हो पाने पर सुरंग की साइट पर प्रदर्शन करने वाले मजदूरों की वाजिब मांगों का समर्थन करते हैं। 

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