पहाड़ में रोजगार सृजन की जगा रहे हैं अलख
गौचर (चमोली)। कुछ लोगों को पहाड़ आज भी पहाड़ सा नजर आता है, वहीं दूसरी ओर हमारे बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने बिना किसी शोर शराबे के चुपचाप अपनी मेहनत और हौंसलों से पहाड़ की परिभाषा ही बदल कर रख दी है। ऐसे लोग आज पलायन की पीडा से कराह रहे पहाड़ के लिए उम्मीद की किरण नजर आ रहे हैं। आज ऐसे ही पहाडी के बारें में आपको रूबरू करवाते हैं जिन्होंने पहाड़ में स्वरोजगार का माॅडल तैयार करके एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। लोग उन्हें कीवी मेन के नाम से भी जानते हैं।
सीमांत जनपद चमोली के कर्णप्रयाग ब्लाक की सिदोली पट्टी में गौचर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मुल्या गांव (ग्वाड) निवासी 48 वर्षीय विक्रम सिंह बिष्ट आज लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनें हुये हैं। उनका स्वरोजगार माॅडल लोगों को बेहद पसंद आ रहा है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी विक्रम सिंह बिष्ट का जीवन बेहद संघर्षमय और चुनौतियां से भरा रहा है। उन्होने कृषि, बागवानी, उद्यानीकरण, सब्जी उत्पादन, फूल उत्पादन से लेकर मत्स्य पालन, विभिन्न प्रजातियों की पौध तैयार करने वाली नर्सरी, हर क्षेत्र में हाथ आजमाया। वे एक बेहतरीन हस्तशिल्पि भी हैं। बेजान लकडियो में भी वे कलाकारी से जान फूंक देते हैं। उन्हें जिस क्षेत्र में सफलता मिली उसको जारी रखा बाकी असफलता वाले क्षेत्रों को छोड दिया। उन्होंने असफलताओं से कभी भी घबराना और हारना नहीं सीखा। बस अपनी जिद और जुनून की बदौलत अपनी पहचान खुद बनायी।
बचपन से था कुछ अलग करने का जुनून
विक्रम सिंह बिष्ट पेशे से न तो कोई इंजीनियर है और न ही कोई वैज्ञानिक और न ही किसी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर। वे पहाड़ को बेहद करीब से जानने और समझने वाले पहाडी है। पहाड़ को समझने की उनकी अपनी अलग परिभाषा है। बंजर होते पहाड़ के गांव में खुशहाली लाने का सपना संजोये विक्रम सिंह बिष्ट पहाड़ के बेहद सामान्य परिवार से हैं, तत्कालीन परिस्थितियों की वजह से वे अपनी पढाई केवल मैट्रिक तक ही जारी रख पाये। लेकिन बचपन से ही उनका सपना था की वो कुछ अलग करके दिखायेंगे। 1992 में उन्होंने उद्योग विभाग से 25 हजार का ऋण लेकर खुद का लघु उद्योग शुरू किया और लकडी सहित अन्य कार्य आरम्भ किया। इस दौरान वे अपने अपनें पुश्तैनी संतरा, नारंगी और नींबू के छोटे से बगीचे में जाया करते थे। उन्हें पेड, पौधे बचपन से ही बेहद आकर्षित करते थे। एक दिन उनके मन में विचार आया की संतरा का पेड ही क्यों लगाया जाता है टहनी की कलम से क्यों नहीं संतरे का पेड तैयार हो सकता है। उन्होंने लोगों से इस संदर्भ में परिचर्चा की तो सबने उन्हें निराश किया। लेकिन उनकी जिद थी की वे टहनी से संतरे का पेड तैयार करेंगे। वे सफल हुये और उनका प्रयोग सफल हुआ। कुछ सालों बाद संतरे के पेड में फूल तो आनें लगे लेकिन फल नहीं लगे। इस संदर्भ में वे कई लोगों से मिले जानकारी हासिल की और लोगो के सुझावों पर अमल करते हुये कमियों को पूरा किया। आखिरकार वो दिन भी आ गया जब संतरे के पेड नें पहली मर्तबा बंपर पैदावार दी। जिससे उत्साहित होकर उन्होंने वर्ष 2000 में अलंकार नर्सरी तैयार की जिसमें विभिन्न प्रकार के फलदार पौध तैयार करके वितरित की। इस नर्सरी में माल्टा, नींबू, नारंगी, सेब, अखरोट सहित विभिन्न प्रजातियों की पौध तैयार की। उन्होंने 2002 और 2004 में दो पाॅलीहाउस लगाकर सब्जियों का उत्पादन शुरू किया। उन्होंने फूल उत्पादन से लेकर सब्जियों का बडे पैमाने पर उत्पादन किया। राई से लेकर लहसुन, प्याज, टमाटर, बैंगन, बंद गोबी, फूल गोबी, ब्रोकाॅली, अदरक, धनियां का उत्पादन किया और बाजार में विक्रय करके मुनाफा कमाया। यही नहीं उन्होंने हर्बल प्लांट जिरेनियम का भी उत्पादन किया। विक्रम सिंह बिष्ट कहते हैं कि पलायन के कारण पहाड़ खाली हो रहा है लेकिन यदि सुनियोजित तरीके से और दीर्घकालीन सोच लेकर कार्य किया जाय तो पहाड़ की बंजर भूमि में भी सोना उगाया जा सकता है। वे चाहते हैं कि लोग वापस अपनें घर गांव लौटे।
2005 में कीवी लगाकर किया था अचंभित, आज कीवी मेन के नाम से प्रसिद्ध हैं
2005 तक पहाड़ के लोगों के लिए कीवी नाम अनजान ही था क्योंकि बहुत ही कम लोगों को कीवी फल के बारें में जानकारी थी। विक्रम सिंह बिष्ट उद्यान विभाग की ओर से हिमाचल गये जहां उन्होंने कीवी के फल और पेड को देखा। बाजार में कीवी फल के दाम पूछने पर उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ की ये फल इतना महंगा भी हो सकता है। वापस लौटने के बाद उन्होंने बडी मुश्किल से कीवी के 10 पेड लगाये। चार साल की मेहनत के बाद 2009 में कीवी नें फल देना शुरू किया और आज भी वे हर साल लगभग 5-6 कुंतल कीवी की पैदावार देते हैं जिससे उन्हें अच्छी खासी आमदनी हो जाती है। उन्होंने कीवी को स्थानीय बाजार गौचर, कर्णप्रयाग से लेकर देहरादून तक भेजा है। उन्होंने कीवी के पांच पेड को खुद ही कलम के द्वारा तैयार किया हैं जो अगले साल से फल देना शुरू कर देंगे। बिक्रम सिंह बिष्ट कहते हैं कि शुरू-शुरू में जब उन्होंने कीवी के पेड लगाये तो लोगों नें उनको हतोत्साहित किया लेकिन आज वही लोग कीवी मेन कहकर बुलाते हैं तो अच्छा लगता है। वे कहते हैं कि मैंने उस समय कीवी के पेड लगाये जिस समय शायद ही पहाड़ में किसी नें कीवी के पेड देखें हो आज उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों में लोग कीवी का बडे पैमाने पर उत्पादन कर रहें हैं।