गोपेश्वर (चमोली)। ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज ने कहा कि मंदिर के निर्माण को पूर्ण हुए बिना मंदिर में मूर्ति स्थापित करना शास्त्र संवत नहीं है। उन्होंने कहा कि मंदिर मूर्ति का शरीर होता है और मूर्ति प्राण है। यदि शरीर पूरा नहीं है तो उसमें प्राण प्रतिष्ठा करने का कोई औचित्य नहीं है। और यह शास्त्र संवत भी नहीं है।

शुक्रवार को ज्योतिषपीठ जोशीमठ में पत्रकारों से बातचीत करते हुए शंकराचार्य ने कहा कि देश में सरकारे किसी की भी हों। वह धर्म निरपेक्ष होती है और संविधान के तहत संचालित होती है। उन्होंने कहा कि जब सरकार धर्म निरपेक्ष होती है तो वह धार्मिक स्थानों को अपने अधीन लिया हुआ है। जो गलत है उन्होंने कहा कि धर्माचार्यों के कार्यों को धर्माचार्यों को करना चाहिए और सरकार के कार्य को सरकार को करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से सरकारी विभागों अथवा संसद का कार्य संचालित करने के लिए यदि साधु संतो को लगा दिया जाए तो यह कितना गलत लगेगा उसी तरह से धर्म के कार्यों में भी होता है। इसलिए धर्म के कार्यों को धर्माचार्यों को करने दिया जाए। उन्होंने कहा कि जिस भी धर्माचार्य का राजनीति की तरफ झुकाव हो वह धर्माचार्य नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि राजनैतिक पार्टियां धर्म निरपेक्ष होती है और धर्माचार्य धर्म को आगे बढ़ाने का कार्य करते है। इसलिए यदि कोई अपने को किसी भी राजनैतिक दल से जोड़ने का प्रयास करता है तो वह धर्माचार्य नहीं हो सकता है।

उन्होंने कहा कि चारों धामों के कपाट बंद होने के बाद यह धारणा बना दी गई है कि भगवान की पूजा अर्चना बंद हो जाती है जबकि ऐसा नहीं होता है। सिर्फ कपाट शीतकाल के लिए बंद होते है और वहां पर भी देव ऋषि उनकी पूजा अर्चना का भार संभालते है। उन्होंने कहा कि इस बार एक माह बाद चारों धामों के कपाट बंद होने के बाद उनके शीतकालीन गद्दी स्थल पर पूजा अर्चना शुरू की जाएगी ताकि श्रद्धालु इस स्थान पर आकर भगवान की पूजा अर्चना कर सके।

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