गोपेश्वर (चमोली)। ईवीएम में कैद प्रत्याशियों का भाग्य का फैसला 10 मार्च को होना है और इसकी उल्टी गिनती शुरू हो गयी है। सात दिन शेष बचे हुए है। जब ईवीएम के पिटारे से प्रत्याशियों को मिले वोट बाहर आयेंगे। लेकिन इस बीच अब न तो कोई प्रत्याशी और ना ही उनके समर्थक कुछ बोलने को तैयार है। हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है। पहले पहल तो हर कोई अपनी जीत का दावा कर रहा था लेकिन अब हर कोई अपनी सीट को फंसा हुआ बताकर बात को यहीं बंद करवा रहे हैं।

उत्तराखंड में विधान सभा चुनाव के लिए 14 फरवरी को मतदान हुआ था। उसके अगले दिन से प्रत्याशी अपनी जीत हार के आंकड़े में जुट गये थे। दो-चार दिन सोशल मीडिया से लेकर चाय की टप्परी पर खूब चर्चाऐं और आंकडे बाजी होती रही। हर कोई अपनी जीत के प्रति आश्वस्त दिखा। लेकिन जैसे ही समय गुजरता चला गया और आंकड़े बाजी हवाई साबित होने लगी तो हर कोई चुप्पी साधता हुआ नजर आने लगा। अब तो आलम यह है कि यदि किसी से चुनाव की चर्चा करनी शुरू की जाए तो वह अपनी सीट को फंसा हुआ बता कर आगे की बातचीत का रास्ता ही बंद कर देता है। जो पहले जीत के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त नजर आ रहे थे अब वही कुछ बोलने को भी कतरा रहे है।
राजनैतिक विश्लेषकों की माने तो इस बार मतदाता ने भी प्रत्याशियों को खूब छकाया है। पहले मतदाता खुल कर अपनी बात सामने रखता था लेकिन इस बार मतदाता ने भी राजनीति के गुर सीखते हुए राजनेताओं का पैंतरा उन पर ही अजमा दिया और चुप्पी साधते हुए अपना मतदान किया। अब टीवी चैनलो से लेकर समाचार पत्रों तक कोई स्पष्ट कहने को तैयार नहीं की किसके सर सजेगा ताज।

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