कर्णप्रयाग। चमोली जिले के जोशीमठ विकास खंड के हेलंग में घास ले जाती हुई महिलाओं के साथ पुलिस और केंद्रीय पुलिस बल के जवानों की ओर से बदसलूकी की घटना तूल पकड़ी जा रही है। मंगलवार को विभिन्न राजनैतिक संगठनों के साथ ही क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने कर्णप्रयाग में जुलूस प्रदर्शन कर इस घटना की निंदा की और उप जिलाधिकारी कर्णप्रयाग के माध्यम से एक ज्ञापन मुख्यमंत्री को भेजकर घटना के दोषियों को बर्खास्त करने की मांग की है।
भाकपा माले के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी, पूर्व जिला पंचायत सदस्य बिरेंद्र मिंगवाल, पूर्व पार्षद सुरेशी देवी ने कहा कि 15 जुलाई को जोशीमठ के हेलंग गांव में जंगल से घास ला रही महिलाओं से न सिर्फ उनके घास के गट्ठर छीनते पुलिस और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के जवान दिख रहे हैं बल्कि वीडियो में ही दिखता है कि एक महिला रो रही है, दूसरी के साथ छीना झपटी हो रही है। यह दृश्य इस राज्य में, जो कि महिलाओं के आंदोलन, उनकी शहादत और कुर्बानियों के बदौलत बना है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में जल विद्युत परियोजनाओं के नाम पर हजारों हजार नाली नाप भूमि, जंगल, चरागाह की भूमि, पनघट, मरघट, पंचायत की भूमि, कंपनियों को पहले ही दे दी गयी है। इसके बाद भी कंपनियों की नीयत लोगों की सामूहिक हक-हकूक की भूमि को भी हड़प लेने की है। इससे आम ग्रामीणों के सम्मुख घास चारा लकड़ी का संकट पैदा हो गया है। जोशीमठ की घटना इसी का परिणाम है। उन्होंने कहा कि विष्णुगाड-पीपलकोटी परियोजना के तहत हेलंग में सुरंग बनाने का कार्य कर रही कंपनी की ओर से खेल मैदान बनाने के नाम पर जहां डम्पिंग जोन बनाया जा रहा है, वह लोगों के पास चारागाह का अंतिम विकल्प बच गया है, वहां लोगों ने पौधरोपण कर इस भूमि को हरा भरा बनाया था। डम्पिंग जोन के नाम पर वहां हरे पेड़ काट दिए गए हैं और चारागाह के इस अंतिम विकल्प को भी खत्म किया जा रहा है। जबकि कम्पनी के पास मलबा डम्पिंग के लिए विकल्प उपलब्ध हैं। उनका कहना है कि डंपिग जोन के नाम पर मलवा सीधे अलकनंदा नदी में जा रहा है। यह विडंबना ही है कि उत्तराखण्ड के राजकीय पर्व हरेला के अवसर पर न सिर्फ हरियाली नष्ट की गई बल्कि उस हरियाली के रक्षकों, पोषकों के साथ भी बदसलूकी की गई, उन्हें गिरफ्तार किया गया और उनका चालान किया गया।
इनका कहना है कि उत्तराखण्ड आपदा के लिहाज से संवेदनशील राज्य है, इसमें चमोली जिला तो और भी संवेदनशील है। साल भर पहले की रैणी आपदा अभी हम भूले नहीं हैं। ऐसे में जलविद्युत परियोजनाओं की मनमानी और अराजक कार्यशैली आपदा को और अधिक भीषण बना देती है। विभिन्न विशेषज्ञों की रिपोर्ट में पूर्व की आपदाओं में इनकी इस कार्यशैली को चिन्हित किया गया है। लिहाजा डम्पिंग के नाम पर पर्यावरण के मानकों की अनदेखी करते हुए, नदी के ठीक ऊपर आबादी के नजदीक ऐसे कार्य की स्वीकृति देना खतरनाक है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि जिला प्रशासन ने कंपनी के साथ मिलकर वन अधिकार कानून 2006, वन पंचायत नियमावली 2012 और वन सरक्षण अधिनियम 1980 का खुला उल्लंघन किया गया है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि इस घटना की उच्चस्तरीय जांच की जाये। दोषियों पर तत्काल सख्त से सख्त कार्रवाई की जाय। जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो। जलविद्युत परियोजना बनाने वाली कम्पनी के कार्यो की भी जांच हो, उनकी मनमानी पर रोक लगे और उनकी नियमित निगरानी की जाए। प्रदर्शन करने वालों में भाकपा माले के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी, पूर्व जिला पंचायत सदस्य बिरेंद्र मिंगवाल, सुरेशी देवी, जिला सचिव, डीवाईएफआई राजेंद्र सिंह नेगी, संयोजक परिवर्तन यूथ क्लब अरविंद चैहान, किशन सिंह बिष्ट, धन सिंह बिष्ट, आशाराम मैखुरी, जितेंद्र कुमार, पवन बिष्ट, अनिल जोशी, सुनील चैहान, संजय सिंह, मिलन भंडारी आदि मौजूद थे।