हरिद्वार। आवाह्न अखाड़े द्वारा स्वामी अरूण गिरि को आचार्य महामण्डलेश्वर बनाए जाने की घोषणा के बाद उपजा विवाद अंदरखाने जारी है। इस विवाद का मूल कारण तो धन है ही साथ ही पद की लालसा भी इस विवाद की बड़ी वजह है।
सूत्र बताते हैं कि आचार्य मण्डलेश्वर बनाए जाने की शुरूआत आवाह्न अखाड़े के आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी शिवेन्द्र पुरी महाराज के ब्रह्मलीन होने से पूर्व ही हो चुकी थी। तभी से अखाड़े के पदाधिकारियों ने आचार्य की खोज शुरू कर दी थी। सूत्र बताते हैं कि आचार्य की खोज शुरू करते ही अखाड़े के संत दो धड़ों में बंट गए थे। एक धड़ा विद्वान व्यक्ति के साथ कितना माल मिलेगा इस ओर ध्यान लगाए हुए था तो दूसरे धड़े का ध्यान इस ओर था की शीघ्र आचार्य मिले और पैसा अपनी जेब में रखकर कार्य की इतिश्री कर ली जाए। इसी के चलते मुम्बई के एक होटल में आचार्य पद के लिए बैठक हुई, जहां एक व्यक्ति से आचार्य बनने के लिए 4 करोड़ रुपये एक धड़े ने मांगे। इसके साथ ही हरिद्वार में एक आचार्य पीठ, सम्पष्टि और पुकार आदि का खर्च बताया। कुल रकम लगभग 5 करोड़ रुपये बतायी गई। इसी दौरान वहां दूसरे धड़े के एक व्यक्ति ने आचार्य पद की बोली लगाते हुए संतों के कारनामे को कैमरे में बंद कर लिया। सूत्र बताते हैं कि 4 करोड़ मांगे जाने पर संत आगबबूला हो गए और मांगने वालों को खरी-खोटी सुनाकर चले आए। बावजूद इसके आचार्य पद के लिए मोटी रकम देने वाले की खोज जारी रही। सूत्र बताते हैं कि पूर्व में आचार्य पद के लिए अरूण गिरि के नाम को खारिज कर दिया गया था। उसके बाद एक संत ने अपनी बिसात बिछाकर पुनः अरूण गिरि को आचार्य पद पर सुशोभित करने के लिए कुछ पदाधिकारियों को राजी कर लिया। वहीं एक और हरिद्वार का व्यक्ति आचार्य बनने का इच्छुक बताया जा रहा था, किन्तु वह व्यक्ति भी मोटी रकम देने के लिए तैयार नहीं था, जिस कारण से उसका नाम भी लिस्ट से हटा दिया गया।
अब आचार्य पद पर अरूण गिरि का नाम फाइनल हो जाने और पट्टाभिषेक की तिथि तय हो गई है। इसके बाद जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामण्डलेश्वर स्वामी प्रबोधानंद गिरि महाराज द्वारा अखाड़े के पदाधिकारियों और अरूण गिरि पर लगाए गए संगीन आरोप कहीं ना कहीं सत्य की कसौटी की ओर जाते दिखाए दे रहे हैं।