गोपेश्वर (चमोली)। चमोली जिले के बंड क्षेत्र के किरूली गांव निवासी होरी लाल के हाथों में लगता है जादू है। उनके हाथ लगते ही रिंगाल की बनायी वस्तुऐं सजीव हो उठती है। उनके हाथों से बनी रिंगाल की सामग्री की प्रदेश में ही नही बल्कि प्रदेश के बाहर अन्य राज्यों में भी खूब डिमांड है। इसी लिए उन्हें रिंगाल का प्रशिक्षण देने के लिए बाहरी राज्य के लोग आमंत्रित करते रहते है।

चमोली जिले का बंड क्षेत्र हस्त शिल्प कला के लिए जाना जाता है। यहां पर हस्त शिल्प के तमाम कारीगर है। जो उत्तराखंड में दम तोड़ती हस्त शिल्प को बचाने में जुटे है। उन्हीं में से एक होरी लाल भी है।  जो रिंगार से घर के उपयोगी सामग्री के साथ ही सजावट की वस्तुऐं भी बनाते है। जिनकी काफी डिमांड है। होरी लाल बताते है कि अभी उन्हें रिंगाल की सामग्री बनाते हुए पांच से छह बरस हो रहे है। उन्होंने यह कला अपने पिता भजन लाल से विरासत में मिली है। उनके पिता आज भी इसी काम से अपने परिवार को भरण पोषण करते है। होरी लाल ने बताया कि इन छह सालों में वे मध्यप्रदेश, हिमांचल, उडिसा सहित अन्य प्रदेशों में रिंगाल से बनायी जाने वाली सामग्री का प्रशिक्षण दे चुके है वहीं चमोली जिले के कई विद्यालयों में भी प्रशिक्षण शिविर चला चुके है। जिसके माध्यम से वे बच्चों को रिंगाल से घर के सजावट की सामग्री बनाने का प्रशिक्षण देते है। यह प्रशिक्षण 15 दिन से लेकर दो माह तक का होता है। उन्होंने बताया कि वे वर्तमान समय में उत्तराखंड बेंबो बोर्ड के ग्रोथ सेंटर पीपलकोटी के माध्यम से अपनी सामग्री को बेचते है।

होरी लाल वर्तमान समय में कोरोना लाॅक डाउन के चलते चारधाम यात्रा न चलने से काफी चिंतित नजर आ रहे है। उनका कहना है कि चारधाम यात्रा के दौरान पीपलकोटी ग्रोथ सेंटर से यात्री यहां से रिंगाल की बनी वस्तुओं को खरीद कर ले जाते थे लेकिन यात्रा बंद होने के कारण उन्हें काफी आर्थिक नुकसान हो रहा है। उनकी आजीविका का साधन रिंगाल बनी सामग्री ही है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि सरकार को ऐसे लोगों को भी सहायता देनी चाहिए जो हस्तशिल्प कला को बचाये हुए है। ताकि उत्तराखंड में दम तोड़ती हुई हस्तशिल्प कला को जीवित रखा जा सके।

 

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