जोशीमठ (चमोली)। उत्तराखण्ड में एक ऐंसा मंदिर है जिसके कपाट सिर्फ एक दिन के रक्षाबंधन के पर्व पर ही खुलते है। वंशी नारायण मंदिर नाम से विख्यात यह मंदिर चमोली जिले के जोशीमठ विकास खंड के उर्गम घाटी में स्थित है। मान्यता है कि इस मंदिर में देवऋषि नारद 365 दिन भगवान नारायण की पूजा अर्चना करते हैं और मनुष्यों को पूजा करने का अधिकार सिर्फ एक दिन के लिए ही है।
किवदंती के अनुसार एक बार राजा बलि ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वह उनके द्वारपाल बने। भगवान विष्णु ने राजा बलि के इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और वह राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए। भगवान विष्णु के कई दिनों तक दर्शन न होने कारण माता लक्ष्मी परेशान हो गई और वह नारद मुनि के पास गई। नारद मुनि के पास पहुंचकर उन्होंने माता लक्ष्मी से पूछा के भगवान विष्णु कहां पर है। जिसके बाद नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को बताया कि वह पाताल लोक में हैं और द्वारपाल बने हुए हैं। नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को भगवान विष्णु को वापस लाने का उपाय भी बताया। कहा कि आप श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक में जाएं और राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांध दें। रक्षासूत्र बांधने के बाद राजा बलि से भगवान नारायाण को वापस मांग लें। माता लक्ष्मी के आग्रह को स्वीकार कर नारद भी उनके साथ पाताल लोक चले गए। जिसके बाद नारद मुनि की अनुपस्थिति में कलगोठ गांव के पुजारी ने वंशी नारायण की पूजा की तब से ही यह परंपरा चली आ रही है।
उर्गम घाटी के स्थानीय निवासी लक्ष्मण सिंह नेगी, रघुवीर सिंह, देवेंद्र रावत बताते हैं कि रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव के प्रत्येक घर से भगवान नारायण के लिए मक्खन आता है। इसी मक्खन से वहां पर प्रसाद तैयार होता है। भगवान वंशी नारायण की फूलवारी में कई दुर्लभ प्रजाति के फूल खिलते हैं। इन्ही फूलों से मंदिर में श्रावन पूर्णिमा पर भगवान नारायण का श्रृंगार भी होता है। इसके बाद गांव के लोग भगवान नारायण को रक्षासूत्र बांधते हैं। मंदिर में ठाकुर जाति के पुजारी होते हैं।
कात्यूरी शैली में बने दस फिट ऊंचे इस मंदिर का गर्भ भी वर्गाकार है। जहां भगवान विष्णु चर्तुभुज रूप में विद्यमान है। इस मंदिर की खास बात यह है कि इस मंदिर की प्रतिमा में भगवान नारायण और भगवान शिव दोनों के ही दर्शन होते हैं। वंशी नारायण मंदिर में भगवान गणेश और वन देवियों की मूर्तियां भी मौजूद हैं।