गोपेश्वर (चमोली)। उत्तराखंड में दम तोडती हस्त शिल्प कला को पुनर्जीवन देने में जुटा है चमोली जिले के बंड पट्टी का किरुली गांव। यहां के हस्त शिल्पी रिगांल से बने विभिन्न प्रकार की सामग्री तैयार कर उसे प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों तक भी पहुंचा रहे है। उनके इस प्रयास से रिंगाल से बनी कलाकृति को नया आयाम भी मिला है। इन्हीं हस्तशिल्पियों में एक है किरूली गांव के प्रदीप कुमार जो रिंगाल से उत्तराखंड के प्रसिद्ध धामों को रिगांल से बनाकर लोगों तक पहुंचा रहे है। उन्होंने इस कला को अपनी आजीविका का भी साधन बनाया है।

प्रदीप कुमार जो मूलतः किरुली गांव के है। हस्तशिल्प कला को जीवंत बनाए रखने के लिए लगातार प्रयासरत है। प्रदीप कुमार का जन्म किरूली  गांव के एक साधारण से परिवार में हुआ जिनका पुश्तैनी काम हस्तशिल्प कला  है। इसके प्रति इनका रूझान बचपन से ही रहा है। रिगांल से मूर्तियां व विभिन्न सामग्री को नया लुक देकर बनाना इनका शौक रहा है।  प्रदीप कुमार ने विभिन्न संस्थाओ व विभाग के माध्यम से शिल्प कार्य को बेहतर ढंग से सीखने के लिए देहरादून, दिल्ली, असम, गोवा, अहमदाबाद व देश के अन्य शिल्प कला से संबंधित जगहो पर प्रशिक्षण में भाग लिया। आज इनके बनाऐ हुए रिगांल बांस के उत्पादो की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। जिन में बदरीनाथ, केदारनाथ मन्दिर रिगांल की  टोकरीयो की डिमांड उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न सुप्रसिद्ध मेलो में होती है। वर्ष 2008 व 2016 में इन्हें जनपद में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 2020 में कोरोना के चलते हुए लोकडाउन के समय बदरीनाथ, केदारनाथ के मन्दिरो के माडल तैयार किये गये। जिन्हें कई सरकारी व गैर सरकारी विभागो के माध्यम से मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश प्रभारी मंत्री, सचिव उत्तराखंड, डीजीपी उत्तराखंड सहित अन्य जन प्रतिनिधियों को प्रतिक चिह्न के रुप में  भेंट किये गये है। इन्होंने इस वर्ष उद्योग विभाग चमोली व ग्रोथ सेन्टर पीपलकोटी के माध्यम से 40 प्रशिक्षणार्थियो को तीन माह का रिगांल व काष्ठ शिल्प का प्रशिक्षण दिया गया। युवाओ को रिगांल शिल्प से स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया गया। प्रदीप कुमार  की ओर से जिले के लगभग पांच सौ से अधिकल लोगो को विभिन्न विभागो व संस्थाओ के माध्यम से प्रशिक्षण दिया गया दिया जा चुका है।

प्रदीप कुमार कहते है कि हस्तशिल्प का कार्य कठिन होने के साथ ही अधिक मेहनत भरा है। जिस कारण युवाओं का इस ओर ध्यान कम है। इस काम में जितनी मेहनत लगती है उस हिसाब से मेहनताना नहीं मिल पाता है। यही वहज है कि लोग धीरे-धीरे इस ओर से विमुख होते चले जा रहे है। यदि सरकार इस ओर ध्यान दे और हस्त शिल्प को प्रोत्साहन करने वालों को सहयोग करे तो हस्तशिल्प को आगे बढाया जा सकता है। 

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