जान हत्थेली पर रखकर सड़क किनारे बने मंदिरों के भरोसे आवाजाही करती है सवारियां

गोपेश्वर (चमोली)। उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है। लोगों की ईश्वर में इतनी आस्था है कि जिस सड़क पर पैदल चलना तो बड़ी बात लोग जान हत्थेली पर रखकर वाहन में सफर कर रहे है। इस सड़क पर 60 किलोमीटर के अंतराल में अनगिनत मंदिर बने हुए है। हर आधा किलोमीटर पर सड़क के किनारे एक छोटा सा मंदिर अवश्व दिखायी देता है। सवारियां जब भी इस मार्ग से होकर गुजरती है तो वे इन मंदिरों में हाथ जोड़ना नहीं भूलते ताकि अपने गंतव्य तक सही सलामत पहुंच जायं। शायद लोगों का सरकार, जनप्रतिनिधियों और विभाग पर से अब भरोसा ही उठ गया है।

हम यहां बात कर रहे है गोपेश्वर-पोखरी मोटर मार्ग की। इसकी जिला मुख्यालय गोपेश्वर से पोखरी तक की दूरी 60 किलोमीटर है। पर इस 60 किलोमीटर की दूरी तय करने में लगभग चार से साढे चार घंटे लग जाते है। सड़क की स्थिति इतनी दयनीय बनी हुई है कि इस चलने का मतलब है एवरेस्ट को फतह करना। सड़क पर इतने गढ्ढे है कि ऐसा लगता है मानों गढ्ढों के उपर सडक बनी है। इस सड़क पर चलना जान जोखिम में डालने के बराबर है।

इसे पोखरी का दुर्भाग्य कहा जाए या सौभाग्य कि, पूर्व से लेकर वर्तमान तक के विधायक यहीं के निवासी है। इसके बाद भी इस सड़क के हालत देखकर विकास भी शर्म से पानी-पानी हो जाए। 60 किलोमीटर की दूरी वाले इस सड़क पर कोई स्थान ऐसा नहीं है जो ठीक ठाक कहा जा सके। कुछ एक स्थान तो ऐसे है जहां पर लोहे के गार्डर डाल कर वाहनों की आवाजाही करवाई जा रही है।

इस सड़क का एक भाग का जिम्मा लोनिवि गोपेश्वर और दूसर भाग का पीएमजीएसवाई पोखरी के पास है। हालत ये है कि गोपेश्वर से पोखरी जाने के शुरूआती हिस्सा जो लोनिवि के अधीन है पिछले वर्ष की आपदा में क्षतिग्रस्त हो गया था जो अभी तक नहीं बन पाया है, वहीं जो हिस्सा पीएमजीएसवाई के पास है उसके तो क्या कहने। इस हिस्से में तो गार्डर डालकर वाहनों की आवाजाही करवायी जा रही है।

पीएमजीएसवाई पोखरी के अधिशासी अभियंता पुरूषोत्तम चमोली का कहना है कि सड़क के सुधारीकरण के लिए आपदा मद से 50 लाख रुपये की धनराशि मांगी गई थी जिसमें सिर्फ छह लाख स्वीकृत हुए है। उसमे से जौरासी के पास सड़क एक बडा हिस्सा टूटा हुआ है जिसे ठीक करने के लिए लगभग पांच लाख खर्च होंगे पर इस भाग को ठीक करने के लिए दो लाख ही मिल पाये है।

एक और जिले में सड़क सुरक्षा को लेकर लगातार बैठके होती रहती है। जिसमें तमाम बड़ी-बड़ी बाते की जाती है। अधिकारियों को सवारियों की सुरक्षा के लिए तमाम हिदायतें दी जाती है पर सड़क के सुधार की जब बात आती है तो धन आड़े आ जाता है।

                   
                                                         

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!