श्रीनगर गढ़वाल। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के राजनीतिक विभाग की ओर से भारतीय लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका विषय को लेकर एक दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर राजनीतिक विभाग के शिक्षकों शोधार्थियों व अन्य विद्यार्थियों ने अपने विचार रखें।
परिचर्चा का संचालन करते हुए शोध छात्र लक्ष्मण प्रसाद ने कहा कि विपक्ष की अवधारणा का जन्म सर्वप्रथम इंग्लैंड में हुआ। भारत में विपक्ष अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ जहां पर छोटे-छोटे संगठन जनता की आवाज उठाकर विपक्ष की भूमिका निभाते थे। कहा कि एक तरफ विपक्ष का काम जनता के बीच जनसभा करके सरकार की खामियां गिनाना है, वहीं दूसरी तरफ सदन के अंदर सत्ता पक्ष को जनहित में कानून बनाने के लिए विवश करना है। स्वतंत्रता के बाद विपक्ष की झलक डॉ. राम मनोहर लोहिया, जेपी नारायण, जॉर्ज फर्नांडिस, अटल बिहारी वाजपेई जैसे सांसदों के वैचारिक रूप में देखी जा सकती है। सोलवीं व वर्तमान लोकसभा में किसी भी दल को मान्यता प्राप्त विपक्ष के लिए पर्याप्त सीटें नहीं मिली। सोलवीं लोकसभा से देखें तो विपक्ष के नेता और विपक्ष जो अनैतिक व्यवहार सदन के अंदर करते हैं वह एक चिंता का विषय है। विपक्ष को सजगता सरलता और सतर्कता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए जिससे संसद की गरिमा बनी रहे।
चर्चा में बोलते हुए राजनीति विभाग के विभाग अध्यक्ष प्रो. एमएम सेमवाल ने कहा कि संसदीय व्यवस्था में विपक्ष सशक्त भूमिका में होता हैै। इसका कार्य सरकार पर सदैव निगरानी करना तथा सरकारी कार्यों को जबाबदेह बनाना हैै ब्रिटिश प्रधानमंत्री हेराल्ड मैकमिन ने कहा कि विपक्ष की संसद व राष्ट्र के प्रति बड़ी भूमिका होती है। खासकर राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर। पंडित नेहरू जी ने भी देश हित में सरकार और विपक्ष की भूमिका को अहम माना था। उन्होंने संसद ना चलने से होने वाले नुकसान की बात कही। सांसदों का कर्तव्य है कि वह संसदीय गरिमा को बनाए रखें, किंतु वर्तमान समय मे संसदीय गरिमा एवं सांसदों के आचरण में लगातार गिरावट आ रही है। इस मौके पर बीए के छात्र अखिलेश, नरेंद्र सिंह रावत, शोध छात्रा शिवानी पांडे, जमुना प्रसाद, गौरव डिमरी, लूसी लोहिया, मयंक उनियाल आदि ने चर्चा में भाग लिया।
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