गोपेश्वर (चमोली)। चमोली जिला मुख्यालय में गढ़वाल विश्व विद्यालय श्रीनगर के वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग की ओर से आयोजित तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का बुधवार को समापन हो गया है। प्रशिक्षण कार्यशाला में वन पंचायत प्रतिनिधियों की ओर से वन पंचायतों को सशक्त बनाने पर जोर दिये जाने की बात कही गई।

कार्यशाला के अंतिम दिवस वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. आरसी सुंदरियाल ने बताया कि इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य उत्तराखंड के वन पंचायत नियमावली के सुधार अथवा नीतिगत मुद्दों, समुदाय को सशक्त करने के विकल्प से जुड़े हुए हैं।  जिसमें वन पंचायत के रखरखाव, कामकाज का अध्ययन अथवा विकेंद्रीकृत वनों का अध्ययन शामिल है। जिसके लिए समय-समय पर हुए वन पंचायत नियमावली संसाधनों का अध्ययन और पंचायती वनों के प्रबंधन प्रभावशीलता  की तुलना आरक्षित वनों के प्रबंधन प्रभावशीलता से किया जा रहा है। उन्होंने वनों का महत्त्व और उनसे हो रहे, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने वनों को बचाने के लिए सब को एक जुट होने की बात कही। सामाजिक कार्यकर्ता हेम गैरोला ने वन पंचायत के इतिहास और उनसे संबंधी नियम कानून, उनके बदलाव के बारे में जानकारी देते हुए लोगों के अधिकार भी बताये।  उन्होंने कहा कि वन पंचायत सरपंचों को अपने अधिकारों को पहचानते हुए युवा पीढ़ी को वन पंचायत से जोड़ने और फ्यूचरिस्टिक अप्रोच को अपनाने, वन पंचायत से जुड़े राजस्व और वन विभाग के मुख्य कार्यों के संतुलन को नीतिगत तरीके से सही करने पर जोर दिया।

कार्यशाला के अंतिम दिन में अलकनंदा मृदा संरक्षण प्रभाग गोपेश्वर के प्रभागीय वनाधिकारी सर्वेश कुमार दुबे, नंदा देवी बायोस्फियर रिजर्व गोपेश्वर के प्रभागीय वनाधिकारी बीबी मर्तुल्य ने वनों को बचाने तथा पर्यावरण को संरक्षित करते हुए वनों से कैसे लाभ लिया जा सकता है उसके बारें में जानकारी दी।

कार्यशाला में वन पंचायत सरपंचो ने वन पंचायत की समस्याऐं भी रखी जिसमें  वन विभाग के साथ तालमेल, वन पंचायत के मुख्य कार्यों की जानकारी, आजीविका, प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण, वन पंचायत में रोजगार की बात सामने रखे। साथ ही नगरीय वन पंचायतों  में हो रहे  सॉलिड वेस्ट डंपिंग और अतिक्रमण जैसी समस्याऐं भी सामने रखी गई। वन पंचायतों के हित के लिए सरकार की कोई महत्वपूर्ण नीति नहीं है जिस पर ध्यान देने जरूरत को भी महसूस किया गया। कार्यशाला में डॉ. मंजू सुंदरियाल, जड़ी बूटी शोध संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. सीपी कुनियाल, जीएस बिष्ट, ओपी भट्ट, विनय सेमवाल, शोध छात्र आलोक सिंह रावत, अक्षय सैनी और रेखा राणा आदि मौजूद थे।

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