पौड़ी गढ़वाल (डॉ. अंजना शर्मा): वर्तमान समय में युवाओं में तनाव (mental stress) की समस्या एक आम विषय बनकर रह गया है. आए दिन युवाओं द्वारा आत्महत्या एवं इसके प्रयास एक आम घटना है. ऐसी घटनाएं हमारे समाज में कोई नई नहीं है लेकिन आज के वर्तमान समय में जबकि कोविड-19 जैसी महामारी चारों तरफ व्याप्त है. तब तनाव जैसी बीमारी एवं समस्याओं का कारण मूलतः है कोविड-19 के प्रभाव को माना जा रहा है. यह कहना गलत भी नहीं है लेकिन सिर्फ कोविड-19 को ही इसका कारण मानना कहां तक ठीक होगा. इस पर भी विचार किया जाना आवश्यक है, क्योंकि कोई भी घटना एक दिन में नहीं घटती है. संयुक्त परिवार में रहकर ही इससे बचा जा सकता है क्योंकि संयुक्त परिवार में रहकर तनाव एवं चिंता से मुक्ति पायी जा सकती है.

वर्तमान में कोविड-19 तो सिर्फ एक वह कारण है जिसने तनाव चिंता एवं आत्महत्या जैसी बीमारियों घटनाओं को उत्पन्न करने का मौका प्रदान किया है. जबकि आज हम सभी को आवश्यकता है समस्या के मूल (जड़) में जाने की उसे पहचानने की. ऐसा नहीं है कि आज से कुछ सालों पहले दुनिया या समाज ने किसी महामारी का सामना न किया हो या कोई विपत्ति उन पर न आई हो पर तब आत्महत्या जैसी घटनाएं इतनी बड़ी संख्या में नहीं थी. क्योंकि पहले परिवार संयुक्त हुआ करते थे. सब मिलजुल कर रहते हुए विपत्तियों का सामना करते थे और अपने को सुरक्षित महसूस करते थे. परिवारों में नैतिक मूल्यों की प्रधानता हुआ करती थी. धीरे धीरे वैश्वीकरण के दौर में परिवार के विघटन के साथ-साथ हमारे मूल्यों में भी बदलाव आया है. आज हम आत्म केंद्रित होकर रह गए हैं. वैश्वीकरण एवं फैशन के इस युग में आज बहुतायत में हमने आधुनिक जीवन शैली एवं वस्तुओं को अपनाया है. इसमें कोई बुराई भी नहीं है क्योंकि किसी भी समाज एवं देश के विकास के लिए परिवर्तन आवश्यक है लेकिन क्या हमने आधुनिक जीवन शैली एवं वस्तुओं को अपनाने से पहले यह विचार किया कि वाकई में हमें किन-किन वस्तुओं को अपनाने की आवश्यकता है और किस को छोड़ने की. आज हमने अपने शौक को अपनी आवश्यकता बना लिया है. आज हमारा जीवन मूल्यों पर निर्भर ना होकर हमारे शौक एवं आवश्यकताओं पर निर्भर होकर रह गया है और आवश्यकताएं भी वह जिनका बिना हम अब हम आराम एवं सुकून का जीवन व्यतीत कर सकते हैं.

आज सोशल मीडिया हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है और कोविड-19 जैसी महामारी के बाद तो सोशल मीडिया पर हमारी निर्भरता और अधिक बढ़ गयी है. आज 4G इंटरनेट की दुनिया में जहां एक क्लिक और फोन कॉल्स के माध्यम से घर बैठे सूचनाएं एवं वस्तुएं कम समय में हम तक उपलब्ध हो जाती हैं. जबकि पूर्व में हमें सूचनाएं वस्तुएं इकट्ठा करने के लिए मेहनत करनी होती थी और इंतजार भी. किसी भी परिस्थिति के दो पहलू होते हैं सकारात्मक एवं नकारात्मक, जहां पहले हमें चीजों के लिए इंतजार एवं मेहनत करनी होती थी. जिसमें हमारा समय एवं शक्ति दोनों व्यय होता था और यही समय एवं शक्ति का व्यय हमें मानसिक एवं शारीरिक रूप से धैर्यवान एवं सामर्थ्यवान बनाता था और साथ ही हमें प्रकृति से जुड़े रहने की कला भी प्रदान करता था. जबकि आज का युवा जोकि पुर्णतः तत्क्षणता वस्तुओं का आदी हो चुका है. उन्हें इंतजार करना पसंद ही नहीं आता है. अगर आज 05 मिनट के लिए इंटरनेट की उपलब्धता में रुकावट आ जाए तो लगता है जैसे जीवन ही प्राण विहीन हो गया है. इसी तरह जीवन में विषम परिस्थितियां अचानक से आकर उनको सामने रखी खड़ी हो जाती हैं तब वह अपना धैर्य संयम एवं सोचने समझने का सामर्थ्य ही खो देते हैं. वह परिस्थिति का सामना करने की बजाय उनसे भागने का मार्ग अपनाते हैं तथा तनाव ग्रस्त हो जाते हैं क्योंकि एक बच्चा अपने इर्द-गिर्द होने वाली घटनाओं से ही सीखता है. इसलिए इसमें परिवार एवं माता पिता की जो भूमिका अहम हो जाती है कि वह अपने बच्चों को बचपन से ही नैतिक मूल्य प्रदान करें. जिससे वह प्रकृति एवं संस्कृति से जुड़ाव रखते हुए आगे बढ़े. माता पिता उनमें दृढ़ इच्छा शक्ति का संचार करें एवं उन्हें विश्वास दिलाया कि वह उनके विषम परिस्थिति में उनके साथ हमेशा खड़े हैं. जिससे बच्चे में असुरक्षा की भावना उत्पन्न ना हो पाय और विषम परिस्थिति एवं दुविधा की स्थिति में बच्चा परिस्थिति से डरकर भागने के स्थान पर बिना हिचके अपनी बात रख सके और परिस्थिति का डटकर सामना कर सके. अपने को समाज एवं समय के साथ समायोजित करते हुए सफलता एवं तरक्की के मार्ग तक पहुंच सके और सफलता की सीढ़ी चढ़ते समय जीवन के किसी भी मोड़ पर अपने जीवन मूल्यों से समझौता ना करे.

पहले के समय में जब परिवार संयुक्त हुआ करते थे. तब बच्चों को बड़ों का साथ एवं अनुभव मिलता था. तब बच्चा स्वतः देखकर सीखता था जबकि आज आवश्यकता है बच्चे को सिखाने एवं वह माहौल प्रदान करने की. हमने तरक्की तो की है लेकिन अपने को प्रकृति से दूर करके एवं मूल्यों का बलिदान देकर. इसलिए कोविड-19 तो सिर्फ एक अलार्म है हम मनुष्यों के लिए जो हमें महामारी के रूप में इशारा कर रही है कि अभी भी वक्त है. हम प्रकृति की ओर लौटें और अपने पूर्वजों के दिए हुए जीवन मूल्यों एवं सांस्कृतिक धरोहरों का सम्मान करें. यही अंतिम सत्य एवं हमारी मुक्ति और सफलता का मार्ग है. इससे हम तनाव से तो दूर रहेंगे ही बल्कि अपने जीवन में खुशहाली और नैतिक मूल्य में बढ़ोतरी करेंगें.

लेखक : डॉ. अंजना शर्मा, असिस्टेंट प्रोफेसर डिपार्टमेंट ऑफ इंग्लिश, एसएसएसटीएसआर राजकीय महाविद्यालय नैनीडांडा, पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड

                   
                                                         

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